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कविता

गुरुबानी

राकेश रंजन


खैनी-चूना बिन दुख दूना
सब जग सूना लागे है
मैं तो मैं ना ही हूँ, बचवा !
तू भी तू ना लागे है।

राम-नाम से जी उचटे है
जबसे डिबिया खतम भई
आकुल मनवाँ सिमरन-पथ से
किधरो-किधरो भागे है।

तू तो, बचवा ! दया-धरम का
बड़ा धनी है, कर्मठ है
नेम-जोग-व्रत-संजम में भी
सब भगतन से आगे है।

जा, बचवा, चुपके से लइहो
चमटोली से चुटकी भर
मेरा नाम न लीहो, कइहो -
नया भगतवा मागे है।

 


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